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४३. गाया
सव्वभूयप्पभूयस्स
सम्मं भूयाइ पासओ। पिहियासवस्स दन्तस्स
पावकम्मं न बन्धइ॥
दश० अ० ४ गा० ९
अर्य
जो प्राणिमात्र को अपने समान समझता है । उन पर समभाव रखता है। जो पाप कर्मों से दूर रहता है तथा जो अपनी इन्द्रियों को वश में रखता है। ऐसे संयमी पुरुष को पापकर्म का बन्ध नहीं होता।