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१.
३.
४.
*
ध्यान व उपयोग से,
२. उपयोग से शयन
८५
हर काम करना चाहिये ।
देख कर के हो धरा पर, कदम धरना चाहिये ||
करे,
व ध्यान से बैठे - उठे ।
विवेक से भोजन करे नित,
सोच फर वाणी
चह
साधक कर्म जो भी करे,
नित ध्यान
-
यतना से करे |
रहेगा
कर्मयोगी,
फर्म वन्धन से परे,
यतना फर्म का प्राण है.
पतना फर्म को
कहे ।
दिव्यता |
महावीर ने यह पचन
प्रिय शिष्य गोतम से एहा ॥