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३९. गाथा
उवलेवो होइ भोगेसु __ अभोगी नोवलिप्पई। भोगी भमइ संसारे
अभोगी विप्पमुच्चई॥
उत्त० अ० २५ गा० ४१ ।।
अर्थ
भोग में फंसा हुआ मनुष्य कर्म से लिप्त होता है । अभोगी कर्म से लिप्त नहीं होता। भोगी संसार में भ्रमण करता है और अभोगी-त्यागी संसार से मुक्त हो जाता है । अर्थात् वह दुख-सुख से ऊपर उठ कर आनन्द को प्राप्त करता है ।