________________
सम्यग्दर्शन
जो जीव सम्यग्दर्शन मे अनुरक्त है, सासारिक फल की कामना से रहित है तथा शुक्ललेश्या मे प्रवर्तमान है, वे जीव उसी भावना मे मरकर परलोक मे सुलभवोधि होते हैं ।
२६७ जो जीव सम्यक्त्व से पतित होकर मरता है उसे पुन धर्म-बोधि प्राप्त होना अत्यन्त दुर्लभ है।
२६८
सम्यक्त्वधारी साधक पाप-कर्म नहीं करता।
२६६ जीव को दस प्रकार से सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है-निसर्ग-रुचि, उपदेश-रुचि, आज्ञा-रुचि, सूत्र-रुचि, बीज-रुचि अभिगम-रुचि विस्ताररुचि, क्रिया-रुचि, सक्षेप-रुचि और धर्म-रुचि ।
२७० सम्यक्त्व के आठ अग इस प्रकार हैंनि शका, निष्काक्षा, निविचिकित्सा, अमूढ-दृष्टि, उपवृहण (सम्यक् दर्शन की पुष्टि) स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना ।
२७१ सम्यग्दर्शन के विना ज्ञान नहीं होता, ज्ञान के बिना चारित्र के गुण नही होते, गुणो के बिना मुक्ति नही होती और मुक्ति के बिना निर्वाणशाश्वत आत्मानन्द प्राप्त नहीं होता।