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भगवान महावीर के हजार उपदेश
२३७
गन्भाइ मिज्जति बुयाबुयाणा, णरा परे पचसिहा कुमारा। जुवाणगा मज्झिम-थेरगा य, चयति ते आउक्खए पलीणा ।।
२३८ अभागमियम्मि वा दुहे, अहवा उक्कमिए भवन्ति । एगस्स गई य आगई, विदुमन्ता सरण न मन्नई ।।
२३६ जहा गेहे पलित्तम्मि, तस्स गेहस्स जो पहू । सारभण्डाणि नीणेइ, असार अवउज्झइ ॥ एव लोए पलित्तम्मि, जराए मरणेण य । अप्पाण तारइस्सामि, तुम्भेहि अणुमन्निओ।
२४० अच्चेइ कालो तूरन्ति राइओ, न यावि भोगा पूरिसाण निच्चा । उविच्च भोगा पुरिस चयन्ति, दुम जहा खीणफल व पक्खी ।
२४१ तिउईट्ट उ मेहावी, जाण लोगसि पावग । तुति पावकम्माणि, नव कम्ममकुव्वमओ ॥
२४२
वित्त पसवो व नाइओ, त वाले सरण ति मन्नई। एए मम तेसु वि अह नो ताण सरण न विज्जई ।।
२३७ सूत्र० १७.१० २४० उत्त० १३१२१
२३८ सूत्र० ११२।३।१७ २३६. उत्त० १९२२-२३ २४१. सूत्र० १११५२६ २४२. सूत्र० ११२।३।१६