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श्रद्धा
२०४ धर्म-तत्त्व मे श्रद्धा होना अत्यन्त दुर्लभ है।।
२०५ नही देखने वालो | तुम देखनेवालो की बात पर विश्वास करते हुए चलो।
२०६ साधना मे वही व्यक्ति सशय करता है जो कि मार्ग मे ही रुक जाना चाहता है।
२०७ धर्म-श्रद्धा हमे रागासक्ति से मुक्त कर सकती है ।
२०८ शकाशील व्यक्ति को कभी समाधि-शान्ति नही मिलती।
२०६ जिस श्रद्धा से दीक्षा धारण की है उसी श्रद्धा के साथ शकादि धातक दुर्गुणो को छोड कर साधुजीवन की सम्यक् परिपालना करनी चाहिए।
श्रुति और श्रद्धा प्राप्त होने पर भी सयम मार्ग मे वीर्य-पुरुपार्थ होना अत्यन्त कठिन है। बहुत से लोग श्रद्धासम्पन्न होते हुए भी सयममार्ग मे प्रवृत्त नही होते।
२११ धर्म श्रद्धा से वैषयिक सुखो की आसक्ति छोड कर यह जीव वैराग्य को प्राप्त कर लेता है।
२१२ उत्तम धर्म को सुन लेने के बाद भी, उस पर श्रद्धा होना और भी दुर्लभ है।