________________
धर्म और दर्शन (अपरिग्रह)
४३
जो भी वस्त्र, पात्र, कम्बल और रजोहरण हैं, उन्हे मुनि सयम और लज्जा की रक्षा के लिए ही रखते हैं। किसी समय वे सयम की रक्षा के लिए इनका परित्याग भी करते है ।
१५७
जो मनुष्य धन को अमृत मानकर अनेक पापकर्मों द्वारा उसका उपार्जन करते हैं, वे धन को छोड कर मौत के मुंह मे जाने को तैयार हैं, वे वैर से बंधे हुए मर कर नरकवास प्राप्त करते है ।
१५८ अज्ञानी मनुष्य जिस कुल मे उत्पन्न होता है, अथवा जिसके साथ निवास करता है उस मे ममत्वभाव रखता हुआ अपने से भिन्न वस्तुओ मे इस मूर्छा भाव से अन्त मे वह बहुत दुखित होता है ।
यदि धन-धान्य परिपूर्ण यह सारी सृष्टि किसी एक व्यक्ति को दे दी जाय तब भी उसे सतोप होने का नही, क्योकि लोभी आत्मा की तृष्णा दुष्पूर होती है।
जो परिग्रह-सग्रहवृत्ति मे व्यस्त है, वे ससार मे अपने प्रति वैर की हो अभिवृद्धि करते हैं।
जो लोग भगवान महावीर के वचनो मे अनुरक्त है, वे मक्खन, नमक, तेल, घृत, गुड आदि किसी वस्तु के संग्रह करने का मन मे सकल्प तक नही लाते।
१६२ ज्ञानी पुरुप सयम साधक उपकरणो के लेने और रखने मे ममत्ववृत्ति का अवलम्बन नहीं रखते । अधिक तो क्या, अपने शरीर के प्रति भी ममत्व नही रखते ।
17