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अस्तेय
१०३ अस्तेय व्रत मे निष्ठा रखने वाला व्यक्ति बिना किसी की अनुमति के–यहाँ तक कि दाँत कुरेदने के लिए एक तिनका भी नही लेता ।
१०४ तीसरा अदत्तादान-दूसरो के हृदय को दाह पहुंचानेवाला, मरण, भय, पाप, कण्ट तथा परद्रव्य की लिप्सा का कारण तथा लोभ का कारण है । यह अपयश का कारण है, अनार्यकर्म है, सन्त पुरुपो द्वारा निन्दित है । प्रियजन और मित्रजनो मे भेद करनेवाला है तथा अनेकानेक रागद्वेष को उत्पन्न करनेवाला है।
१०५ जो रूप मे अतृप्त होता है उसकी आसक्ति वढती ही जाती है, इसलिए उसे सन्तोष नही होता । असन्तोष के दोष से दुखित होकर वह दूसरे की सुन्दर वस्तुओ का लोभी बनकर उन्हे चुरा लेता है।
सचित्त पदार्थ हो या अचित्त, अल्प मूल्यवाला पदार्थ हो या बहुमूल्य, और तो क्या दांत कुरेदने की शलाका भी जिस गृहस्थ के अधिकार मे हो, उसकी विना आज्ञा प्राप्त किये पूर्ण सयमी साधक न तो स्वय ग्रहण करते हैं, न दूसरो को ग्रहण करने के लिए उत्प्रेरित करते हैं और न ग्रहण करनेवालो का अनुमोदन ही करते हैं ।
१०७ किसी भी चीज को आज्ञा लेकर ग्रहण करनी चाहिए ।