________________
धर्म और दर्शन ( सत्य )
६७
किसी स्वार्थ या दवाव के कारण असाधु को साधु नही कहना चाहिए, साधु को ही साधु कहना चाहिए ।
£5
असत्यवचन बोलने से वदनामी होती है, परस्पर वैर बढता है, और मन मे सक्लेश की अभिवृद्धि होती है ।
ह
सत्य, मनुष्यो द्वारा स्तुत्य तथा देवो द्वारा अर्चनीय है ।
२५
१००
सत्य वचन भी यदि कठोर हो, तो वह मत बोलो ।
१०१
अपनी आत्मा के द्वारा सत्य की खोज करो !
१०२
जिसकी अन्तरात्मा सदा सत्य भावो से सम्पन्न है, उसे विश्व के प्राणीमात्र के साथ मित्रता रखनी चाहिये ।