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सत्य के प्रभाव से मनुष्य sad To I
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धर्म और दर्शन (सत्य)
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महासमुद्र मे भी सुरक्षित रहते है
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जो मनुष्य असत्य का पोपण करते हैं, वे ससार-सागर को पार नही कर सकते ।
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सत्य वचनो मे भी अनवद्य सत्य अर्थात् हिंसा-रहित सत्य वचन श्रेष्ठ है ।
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साधक को ऐसा सत्य वचन बोलना चाहिए, जो हित, मित और ग्राह्य हो ।
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सत्य यश का मूल है, सत्य विश्वास का परम कारण है, सत्य स्वर्ग का द्वार है और सत्य ही सिद्धि का सोपान है ।
४
सत्य भी यदि सयम का विघातक हो तो, उसे बोल कर प्रकट नही करना चाहिए ।
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मत्य- - चन्द्र मण्डल से भी अधिक सौम्य है और सूर्य मण्डल से भी अधिक तेजस्वी - प्रभास्वर है ।
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ऐसा सत्य भी नही बोलना चाहिए, जिससे किसी प्रकार का पापागमअनर्थ होता हो ।