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सत्य
७४
वह सत्य ही भगवान् है ।।
७५ सदा हितकारी सत्य वचन बोलना चाहिए ।
निर्ग्रन्थ अपने स्वार्थ के लिये या दूसरो के लिये क्रोध से, या भय से किसी प्रसग पर दूसरो को पीडा पहुंचानेवाला सत्य या असत्य वचन न तो स्वय बोले न दूसरो से बुलवाये ।
७७ इस विश्व मे सभी सन्त पुरुषो ने मृपावाद अर्थात् असत्य वचन की घोर निन्दा की है । क्योकि वह सभी प्राणियो के लिए अविश्वसनीय है । अत असत्यवचन का परित्याग करना चाहिए।
७८
इस लोक मे सत्य ही सार तत्व है । यह महासमुद्र से भी अधिक गम्भीर है।
७६ किसी के पूछने पर भी अपने स्वार्थ के लिए अथवा दूसरो के लिये पाप युक्त निरर्थक वचन न बोले और मर्मभेदक वचन भी नही बोलना चाहिए।
८०
मनुष्य लोभ से प्रेरित होकर झूठ बोलता है।