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धर्म और दर्शन (अहिंसा)
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एक जीव जो एक जन्म मे त्रस होता है, वही दूसरे जन्म मे स्थावर होता है। बस हो या स्थावर, सभी जीवो को दु ख अप्रिय होता है ऐसा मानकर भव्यात्मा को अहिंसक बने रहना चाहिए।
भव्यात्मा को चाहिये कि वह समस्त ससार अर्थात् सभी जीवो को समभाव से देखे । वह किसी को प्रिय और किसी को अप्रिय न बनाएँ।
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सयम-निष्णात मनुष्य को किसी के भी साथ वैर-विरोध नही करना चाहिए।
यह जो प्राणियो मे नाना प्रकार का दुःख देखा जाता है, वह आरम्भजनित है । अर्थात् हिंसा मे से उत्पन्न होता है ।
कुछ लोग प्रयोजन से हिंसा करते हैं तथा कुछ लोग बिना प्रयोजन के भी।
५७ कुछ लोग क्रोध से हिंसा करते है, कुछ लोग लोभ से हिंसा करते हैं और कुछ लोग अज्ञानता के वशीभूत होकर हिंसा करते हैं ।
अहिंसा बस और स्थावर सभी प्राणियो का कुशल-क्षेम-मगल करने वाली है।
भयाकुल प्राणी के लिए शरण की प्राप्ति श्रेष्ठ होती है। वैसे ही प्राणियो के लिए भगवती अहिंसा की शरण विशेष हितकर है।
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समस्त जीवो पर मैत्रीभाव रखें।
एक अहिंसक ऋपि-आत्मा की हत्या करनेवाला अनन्त जीवो की हिंसा करनेवाले के समान है।