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प्रस्तुत पुस्तक मे विद्वान लेखक ने अहिंसा की व्यावहारिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, उनके विभिन्न अगो का विशद विवेचन किया है। इसे पढकर अहिंसा की तेजस्वी शक्ति का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
पुस्तक सात खण्डो में विभक्त है । पहले खण्ड मे उन्होने अहिंसा के मादर्श को समझाया है । दूसरे मे मानव जाति एक है, इसको स्पष्ट किया है । तीसरे मे अहिंसा की साधना का ढग वताया गया है । इसी खण्ड मे अपरिग्रहवाद की विस्तार से चर्चा है । वाद के चार अध्यायो मे मरल सुस्पष्ट मापा मे अहिंसा के बुनियादी सिद्धान्तो का विवेचन प्रस्तुत है । अहिंसा और विज्ञान के समन्वय पर भी बल दिया गया है । अन्त मे अहिंसा एव विश्व शान्ति के ज्वलन्त प्रश्न पर विचार किया गया है।
पुस्तक कई दृष्टियो से पठनीय, चिन्तनीय, एव सग्रहणीय है। माशा है कि साहित्यिक जगत मे यह पूर्ण सम्मानित होगी।
-नवभारत टाइम्स, १४ दिसम्वर १९६६, वम्बई से अहिंसा की व्यावहारिक पृष्ठभूमि को स्पर्श करते हुए उसके विभिन्न अगो का विशद विवेचन श्री गणेश मुनिजी शास्त्री ने प्रस्तुत पुस्तक मे किया है। अहिंसा के सम्बन्ध मे लेखक निष्ठावान है और साथ ही व्यावहारिक बुद्धि से युक्त भी । अध्ययन एव अनुभव के आधार पर की गई उसकी विवेचना अहिंसा मे निष्ठा रखने वाले प्रत्येक पाठक के लिए उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसा मेरा दृढतम विश्वास है।
-उपाध्याय अमरमुनि से अपने बहुत-से लेखो तथा मापणो मे मैंने इस बात पर जोर दिया है कि हमे सरल, सुवोध भाषा मे कुछ ऐसी पुस्तकें तैयार करनी चाहिए, जो सामान्य बुद्धि और ज्ञान रखने वाले व्यक्तियो की भी समझ मे आ जाय और वे इन्हें पढकर जान सकें कि अहिंसा की शक्ति कितनी तेजस्वी है और उन पर आचरण करके किस प्रकार राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय जीवन जगत मे स्थायी शान्ति और सुख स्थापित किया जा सकता है । इस दृष्टि से प्रस्तुत पुस्तक को देखकर मुझे हादिक प्रसन्नता हुई। इसके लेखक जैन मुनि हैं और इन्होंने अहिंसा तथा सम्बन्धित सभी विपयो का सूक्ष्म अध्ययन एव चिन्तन किया है।
-~-यशपाल जैन, देहली * श्री गणेश मुनिजी शास्त्री की हिसा की बोलती मीनारें अहिंसा का आधुनिक शास्त्र है। इसे अहिंसा की गीता कहे, तो कोई अतिशयोक्ति नही
-~साध्वी उज्ज्वलकुमारी