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परलोक
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उस, मरनेवाले व्यक्ति ने जो भी कर्म किया है-शुभ या अशुभ उसी के साथ वह परलोक मे चला जाता है।
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गृह मे निवास करता हुआ गृहस्थ भी यथाशक्ति प्राणियो के प्रति दयाभाव रखे, सर्वत्र समता धारण करे, नित्य जिन-वचन का श्रवण करे, तो वह मृत्यु के पश्चात् दिव्यगति मे उत्पन्न होता है ।
६२४ जिन्हे तप, सयम, क्षमा, और ब्रह्मचर्य प्रियकर है, वे शीघ्र ही देवलोक-स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। भले ही पिछली अवस्था में ही क्यो न प्रवजित हुये हो?
६२५-६२६ जिसने विविध प्रकार के आसन, शय्या, वाहन, धन और काम-विषयो को भोगकर , अति परिश्रम से एकत्र किये धन को द्यूत आदि के द्वारा गवाकर तथा बहुत कर्म-रज का सचय किया, केवल वर्तमान की ही दृष्टि रखनेवाला वह जीव मृत्यु के क्षणो मे उसी प्रकार शोक करता है, जिस प्रकार पाहुने के निमित्त पोपा हुआ मेमना (बकरा) पाहुने के आने पर।
६२७ जो पथिक विना पाथेय किसी लम्वे मार्ग का अनुसरण करता है वह आगे जाता हुआ भूख और प्यास से पीडित होकर अत्यन्त दुखी होता है।