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शिक्षा और व्यवहार (तृष्णा)
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यह पुरुष अनेक चित्त है अर्थात् अनेकानेक कामनाओ के कारण मनुष्य का मन यत्र-तत्र विखरा हुआ रहता है । जैसे किसी व्यक्ति का छलनी मे जल भरना शक्य नही लगता, वैसे ही अपनी कामनाओ की पूर्ति करना शक्य नही है।
६०१ कामनाओ का पार पाना अत्यन्त कठिन है ।
६०२ इस लोक मे जो तृष्णा रहित है, उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है।
जो अपनी कामनाओ-इच्छाओ को रोक नही पाता, वह भला साधना कैसे कर पायेगा?
१०४ मुमुक्षु आत्मा को तृष्णा रहित होकर विचरण करना चाहिए ।
६०५ वही व्यक्ति मनुष्यो के लिए चक्षु के समान मार्गदर्शक है जिसने भोग की तृष्णा पर विजय पाली है।
६०६ बुद्धिमान पुरुष को अपना गृद्धिभाव दूर हटाना चाहिए।