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शिक्षा और व्यवहार (ज्ञानी-अज्ञानी)
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८७१ पण्डित मुनि बाल-भाव और अबाल-भाव की तुलना करे, और बालभाव को छोडकर अवाल-भाव का सेवन करे ।
८७२ अनन्त ज्ञानी आत्माओ ने प्रमाद को कर्मोपादान का कारण बतलाया है और अप्रमाद को कर्मक्षय का । इसी कर्मोपादान और कर्मक्षय के कारण ही मनुष्य को वाल और पण्डित कहा जाता है ।
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यदि पण्डित पुरुष किसी प्रकार अपनी आयु का क्षय काल जान ले, तो उससे पूर्व शीघ्र ही वह सलेखनारूप शिक्षा को अपना ले ।
८७४ अज्ञानी और मन्दमति मूढ जीव ससार मे उसी प्रकार फंस जाते हैं जैसे श्लेष्म-कफ मे मक्खी।
८७५ अज्ञानी जन ऐसा सोचते हैं कि परलोक हमने देखा नही है किन्तु यह विद्यमान काम-भोग का आनन्द तो चक्षु-दृष्ट है, आँखो के सामने है।
. ८७६ मूढ प्राणी इस अनत ससार मे बार-बार लुप्त होते रहते हैं अर्थात् जन्म मरण करते रहते हैं ।