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अज्ञान
८५०
अज्ञानी सदा सोये रहते हैं, और ज्ञानी सदा जागते रहते हैं ।
८५१
यह समझ लीजिए कि अज्ञान तथा मोह ही ससार मे अहित और दुख पैदा करने वाला है ।
८५२
जिस प्रकार नेत्र हीन — अन्ध व्यक्ति प्रकाश होते हुये भी बाह्य दृश्य कुछ भी नही देख पाता है, उसी प्रकार प्रज्ञाहीन मनुष्य शास्त्र ज्ञान समक्ष होते हुए भी सत्यासत्य का निर्णय नही कर सकता ।
८५३
अज्ञानी जीव अन्धकारयुक्त आसुरीगति को प्राप्त होते है ।
८५४
अज्ञानी मनुष्य जब सभी मिथ्या विचारो को सुन लेता है तो वह उन्ही मे उलझ पुलझ कर रह जाता है ।
८५५
अज्ञानी जीव स्वय के ऊपर भी अनुशासन नही कर सकता, दूसरो पर तो करने का सवाल ही क्या
?
८५६
अज्ञानी आत्मा अपने कर्मों के द्वारा कर्मों का विनाश नही कर सकते ।
८५७
मन्दबुद्धिवाले तथा अज्ञानी पुरुष अपनी पापमयी दृष्टि के कारण ही नरक में जाते हैं
८५८
ऊँची भूमि पर चढते हुए, दुर्बल बैलो की भाति अज्ञानात्मा सकट काल मे विषाद को प्राप्त होते हैं ।