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पाप-परिणाम
८४० जो आत्मा पापकर्म का उपार्जन करते हैं, उन्हे रोना पडता है, दुख भोगना पडता है और भयभीत होना पडता है।
८४१ जो मनुष्य पाप करते हैं वे भयकर घोर नरक मे जाते है ।
८४२ यदि विवेकी मनुष्य जान-अनजान मे कोई अधर्म-कृत्य कर बैठे, तो अपनी आत्मा को शीघ्र उसमे मोहे और फिर दुबारा वैसा कार्य न करे।
८४३ पूछने पर किये हुए पाप कर्म को छिपाना नही चाहिए, किये हुए को किया तथा नही किये हुए को न किया हुआ कहना चाहिए ।
८४४ माधक पापकर्मों से आत्मा को हटा ले ।
८४५ पाप के अठारह प्रकार है-(१) प्राणातिपात-हिंसा (२) झूठ (३) चोरी (४) मैथुन (५) परिग्रह (६) क्रोध (७) मान (८) माया (९) लोभ (१०) राग (११) द्वेष (१२) कलह (१३) दोषारोपण (१४) चुगली (१५) असयम मे रति-सुख और सयम मे अरति-असुख (१६) परनिंदा (१७) कपटपूर्ण झूठ (१८) मिथ्यादर्शन शल्य ।