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धर्म और दर्शन (धर्म)
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जो-जो रात और दिन एक बार अतीत की ओर चले जाते हैं, वे पुन कभी नही लौटते, जो मनुष्य अधर्म, पाप कर्म करता है, उसके वे रातदिन विल्कुल व्यर्थ जाते हैं।
जो-जो रात और दिन एक बार अतीत की ओर चले जाते हैं, वे पुन. कभी नही लौटते, जो मनुष्य धर्म करता है, उसके वे रात-दिन पूर्ण सफल हो जाते हैं।
यह आत्मा सुनकर ही धर्म का मार्ग जानता है और सुनकर ही पाप का । दोनो मार्ग सुनकर ही जाने जाते हैं। जो अभीष्ट कल्याणकर प्रतीत हो उसका आचरण करे ।
मानव-देह पाकर भी सद्धर्म का श्रवण अति दुर्लभ है, जिसे सुनकर मनुष्य तप, क्षमा और अहिंसा को स्वीकार करते है ।
भले ही कोई सहयोग न दे, अकेले ही सद्धर्म का आचरण करना चाहिए।
१३
विनय एक स्वय तप है और वह आभ्यन्तर तप होने से श्रेष्ठतम धर्म है।
१४ किसी समय तीन वणिक पुत्र मूलपूंजी लेकर धन कमाने निकले। उनमे से एक को लाभ हुआ, दूसरा अपनी मूलपूंजी ज्यो की त्यो बचा लाया
१५ और तीसरा मूल को भी गवाकर वापस आया । यह व्यापार की उपमा है, इसी प्रकार धर्म के विपय मे भी जानना चाहिए।