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शिक्षा और व्यवहार (विषयभोग-मुक्ति)
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जैसे किंपाक फलो का परिणाम सुन्दर नही होता, उसी प्रकार मोगे हुए भोगो का परिणाम सुन्दर नहीं होता।
८१५ ससार के भोगो मे आसक्त रहनेवाले प्राणी पुन -पुन जन्म-मरण को प्राप्त करते रहते हैं।
सभी गीत विलाप हैं, सभी नाच-रग विडम्बना है, और सभी आभूषण गरीर पर बोझरूप हैं । अधिक क्या, ससार के सभी काम-भोग अन्त मे दुख ही देनेवाले हैं।
८१७ गीध पक्षी के दृष्टान्त को जानकर विवेकी मनुष्य काम भोग को ससारवर्धन का हेतु समझे । तथा उनसे उसी प्रकार शकित होकर चलना चाहिए, जिस प्रकार गरुड के सामने सर्प शकित हो कर चलता है।
८१८ जो मनुष्य वासना के प्रवाह को नही तैर सकते हैं, वे ससार के प्रवाह को कभी नही तैर सकते ।
८१६ ससार मे देवताओ सहित सभी प्राणियो मे जो दु ख देखे जाते है वे सब कामासक्ति के कारण ही हैं।
८२० जो आत्मा विषयो के प्रति उदास-अनासक्त है वह ससार मे रहता हुआ भी उस मे लिप्त नहीं होता। जैसे कमलिनी का पत्र जल मे रहते हुए भी उन से विलग रहता है ।
८२१ मिट्टी के सूखे गोले के समान जो साधक विरक्त है, वह कही भी नही चिपकता अर्थात् आसक्त नहीं होता ।