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विषयभोग-मुक्ति
८०५
जो भोगी है, वह कर्मों से लिप्त होता है और जो अभोगी है, भोगासक्त नही है, वह कर्मों से लिप्त नही होता।
८०६ काम-भोग क्षण-मात्र सुख देनेवाले हैं, और बदले मे चिर-काल तक दुख देनेवाले है।
८०७ काम-भोग अनर्थों की खान है।
८०८ काम-भोग की लालसा रखनेवाले प्राणी उन्हे प्राप्त किये बिना ही अतृप्त-दशा मे एक दिन दुर्गति को प्राप्त हो जाते हैं ।
८०६ एक अपने (विकारो) को जीतने पर सवको जीत लिया जाता है ।
८१० काम-भोगो मे आसक्त प्राणी कर्मोका बन्धन करते है।
८११ सभी काम-भोग अन्तत दु ख देनेवाले ही होते है ।
८१२ यथार्थ मे बन्धन के हेतु-अन्तर के विकार ही होते हैं।
८१३ काम-भोग शल्य-रूप है, विषरूप है और विषधर सर्प के समान है।
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