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शिक्षा और व्यवहार (भाषा-विवेक)
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७६४ भापा के दोप और गुणो को जानकर दोषपूर्ण भाषा को सदा के लिए छोड देना चाहिये।
७६५ किसी की पीठ पीछे चुगली नहीं खाना चाहिए, क्योकि यह दोप पीठ का मांस नोचने के समान है।
७६६ यदि कोई पूछे तो अपने लिये अथवा अन्य के लिये, अथवा-दोनो के लिए, स्वप्रयोजन अथवा निष्प्रयोजन, पाप एव निरर्थक वचन नही बोलना चाहिये । न मर्मभेदी वचन ही बोलना चाहिये ।
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देव, मनुष्य तथा तिर्यंच-जब परस्पर युद्ध करते हो तव-इसकी जय हो और इस की पराजय हो-ऐसा वचन नहीं बोलना चाहिए । क्योकि ऐसा बोलने से एक प्रसन्न होता है और दूसरा नाराज । ऐसी दुख की स्थिति साधक को उपस्थित करना उपयुक्त नही है। .