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शिक्षा और व्यवहार (शिक्षा)
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७४५ आयुष्मन् । यतनापूर्वक चलने, यतनापूर्वक खडा होने, यतनापूर्वक बैठने, यतनापूर्वक सोने, यतनापूर्वक खाने और यतनापूर्वक बोलनेवाला पाप-कर्म का वन्धन नही करता।
७४६ सुशिक्षित व्यक्ति स्खलना होने पर भी किसी पर दोषारोपण नही करता और न कभी मित्रो पर क्रोध ही करता है। यहां तक कि अप्रिय मित्र की परोक्ष मे भी प्रशसा ही करता है।
७४७ प्रभु की आज्ञा पालन करने मे जो व्यक्ति श्रद्धा-शील होता है, वह मेधावी बुद्धिमान कहलाता है ।
७४८
जो प्रभु-आज्ञा की सम्यग् आराधना करता है, वह पण्डित है तथा पापकर्मों से अलिप्त रहता है ।
७४६
बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि वह भगवान की आज्ञा का उल्लघन न करे।
७५० आप्त पुरुषो द्वारा वताए हुए तत्व को जानकर तदनुसार कार्य करनेवाले को कही भी भय की स्थिति का सामना नही करना पडता ।
७५१ श्रद्धाशील वीरपुरुप को शास्त्रानुसार सदा पराक्रम करना चाहिये ।
७५२ इच्छा तथा लोभ का सेवन नही करना चाहिए।
७५३ कल्याणभागी के लिये लज्जा, दया, सयम और ब्रह्मचर्य-ये आत्मविशुद्धि के साधन है।