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जीवन और कला (सदाचार)
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७१२ जैसे सडे हुए कानोवाली कुतिया सभी स्थानो से निकाल दी जाती है, वैसे ही दु शील, उद्दड और वाचाल मनुष्य को सर्वत्र तिरस्कार करके निकाल दिया जाता है। ।
७१३ जिस प्रकार सूअर चावलो का स्वादिष्ट भोजन छोडकर विष्ठा खाता है, उसी प्रकार अज्ञानी मनुष्य सदाचार को छोडकर दुराचार मे रमण करना पसद करता है।
७१४ कभी-कभी अज्ञान-अन्धकार मे भी सदाचार की ज्योति जल उठती है और कभी-कभी ज्ञान-ज्योति पर दुराचार का अन्धकार भी छा जाता है।
७१५ जो व्यवहार धर्म-सगत है, जिसका तत्त्वज्ञ आचार्यों ने सदा आचरण किया उस व्यवहार-सदाचार का आचरण करनेवाला मनुष्य कभी भी निन्दा का पात्र नही होता ।