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सदाचार
७०६
चीवर, चर्म, नग्नत्व, जटाधारीपन, सघाटी और सिर मुण्डाना-ये सव दुष्टशीलवाले साधक की रक्षा करने में समर्थ नही होते ।
भिक्षु हो अथवा गृहस्थ, जो सुव्रती सदाचारी है, वह दिव्य देवगति को प्राप्त होता है।
७०८
बहुश्रुत ज्ञानी और सदाचारी साधक मृत्यु के क्षणो मे भी सत्रस्त नही होते ।
७०६ वन्ध और मोक्ष की चर्चा करनेवाले दार्शनिक केवल वाणी के बल पर ही आत्मा को आश्वासन देते हैं। किंतु आचरण कुछ भी नही करते, वे केवल बोल कर ही रह जाते हैं ।
७१० विविध भाषाओ का ज्ञान मनुष्य को दुर्गति से बचा नही सकता, तो फिर विद्याओ का अनुशासन कैसे किसी को बचा सकेगा ?
हे राजन् | तुम जीवन के पूर्वकाल मे रमणीय होकर उत्तरकाल मे अरमणीय मत बनना ।