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राग-द्वेष
राग और द्वप ये दोनो कर्म के बीज हैं । अत कर्म का उत्पादक मोह ही माना गया है। कर्म मिद्धान्त के विशिष्ट ज्ञानी यह कहते हैं कि ससार मे जन्म-मरण का मूल कर्म है और जन्म-मरण यही एक मात्र दुख है।
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जीव दो कारणो से पापकर्म बाधते है-राग और द्वेष से ।
દ૬૪ राग और द्वेष ये दोनो पाप कार्यों की प्रवृत्ति कराने में सहायक हैं ।
६६५ अज्ञानी जीव राग-द्वेप से आवृत्त होकर विविध पाप-कर्म किया करते है।
द्वेष को नष्ट करो, और राग को दूर करो। ऐसा करने से ससार मे सुखी हो जाओगे।
६६७ अनुपशान्त राग-द्वेषवाला पापकर्मी जीव ससार मे उसी प्रकार पीडित होता है, जैसे विपममार्ग पर चलता हुआ अन्धा व्यक्ति ।
६६८ दो प्रकार के बन्धन हैं-प्रेम का बन्धन और द्वष का वन्धन ।