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जीवन और कला (लोभ)
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६४७ चावल, जौ आदि धान्यो, सुवर्ण तथा पशुओ से परिपूर्ण पृथ्वी भी लोभी मनुष्य को तृप्त कर सकने में असमर्थ है। यह जानकर तप, सयम का आचरण करना चाहिए।
६४८ कदाचित् सोने और चांदी के केलाश के समान विशाल असख्य पर्वत हो जायें तो भी लोभी मनुष्य की तृप्ति के लिए वे अपर्याप्त ही है । कारण कि इच्छा आकाश के समान अनन्त है।
६४६ जो व्यक्ति लोम करता है वह अपनी ओर से चारो ओर वैर की अभिवृद्धि करता है।
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बहु मूल्य पदार्थों से परिपूर्ण यह समुचा लोक यदि किसी मनुष्य को दे दिया, तो भी इससे उसे सन्तोष नही होगा। लोभी आत्मा की तृष्णा इस प्रकार शान्त होनी अत्यन्त कठिन है।