________________
६३६
लोभ सभी सद्गुणो का नाश कर देता है ।
६४०
लोम मुक्ति-पथ का अवरोधक है।
६४१
लोभ का प्रसंग उपस्थित होने पर व्यक्ति सत्य को झुठला कर असत्य का आश्रय लेता है |
६४२
निर्भीक् स्वतन्त्र विचरनेवाला सिंह भी मास के लोभ से जाल मे फँस जाता है ।
लोभ
६४३
मजीठ के रंग के समान जीवन मे कभी नही छूटनेवाला लोभ आत्मा को अधोगति (नरक) की ओर ले जाता है ।
६४४
लोभ को सन्तोप से जीतना चाहिए ।
६४५
लोभ को जीत लेने से सन्तोप की प्राप्ति होती है ।
६४६
ज्योज्यो लाभ होता है त्यो त्यो लोभ भी बढता है, दो मासे सुवर्णं से पूरा होनेवाला कार्य करोड से भी पूरा नही हुआ ।
१८१