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मान
६१८ पत्थर के खभे के समान जीवन में कभी नही झुकनेवाला अभिमान आत्मा को नरकगति की ओर ले जाता है ।
६१६ प्रज्ञा-मद, तप-मद, गौत्र-मद, और आजीविका-मद-इन चार प्रकार के मदो को नही करनेवाला निस्पृह भिक्षु सच्चा पण्डित और पवित्रात्मा होता है।
६२० गर्वशील आत्मा अपने गर्व मे चूर हो कर दूसरो को सदा विम्बभूतपरछाई के समान तुच्छ मानता है ।
६२१
जो अपनी बुद्धि के अहकार मे दूसरो की उपेक्षा करता है, वह मन्दबुद्धि है।
६२२
अहकार करना अज्ञानी का द्योतक है।
मान को जीतने से जीव को नम्रता की प्राप्ति होती है ।
६२४ अहकार करता हुआ मनुष्य महामोह से विवेक शून्य होता है ।
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