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क्रोध
६०७
पर्वत की दरार के सदृश जीवन मे कभी नही मिटनेवाला उम्र क्रोध आत्मा को नरक गति की ओर ले जाता है ।
६०८
क्रोधान्य व्यक्ति सत्य, शील, और विनय का विनाश कर डालता है ।
६०६
अपने आप पर भी कभी क्रोध न करे ।
६१०
क्रोध प्रीति का नाश करता है ।
६११
शान्ति से क्रोध को जीतें ।
६१२
क्रोध मनुष्य की आयु को नष्ट करता है तथा क्रोध से मानसिक दुख होता है । क्रोधी मनुष्य पापकर्म को बाघ कर नरक मे जाता है और वहाँ नाना प्रकार के दुखो को भोगता है, यह समझकर क्रोध का त्याग करना चाहिए ।
६१३
आत्मसाघक --- कम्परहित होकर क्रोधादि कषाय को नष्ट कर के कर्मरूपी काष्ठ को जला डालता है ।
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