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जीवन और कला (कषाय)
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क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारो अन्तरात्मा के भयकर दोष हैं।।
जो एक कपाय को नमाता है, जीतता है, वह मिथ्यात्त्वादि अनेक दोषो को जीत लेता है, और जो अनेको को जीत लेता है, वह एक कषाय को जीत लेता है।
६०१
क्रोध का निवारण करे, मान को दूर करे, माया का सेवन न करे, लोभ को त्यागे।
कषाय-प्रत्याख्यान-(त्याग) से जीव वीतराग-भाव को प्राप्त होता है ।
६०३
जो चार कपाय से रहित है, वह पूज्य है ।
६०४ जो गुण है वही मूलस्थान अर्थात् कषाय है, और जो कषाय हैं, वही गुण अर्थात् विषय-वासना है ।
किसी के भी साथ वैर-विरोध मत रखो।
रखो।
६०६ जो कषाय का उपशम करता है, वही वीतराग प्रभु के पथ का सच्चा आराधक होता।