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ब्राह्मण कौन ?
५५४ मनुष्य कर्म से ही ब्राह्मण होता है, कर्म से ही क्षत्रिय होता है, कर्म से ही वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र होता है।
५५५ जो क्रोध, हास्य, लोम अथवा भय आदि किसी भी अशुभ सकल्प से असत्य नहीं बोलता उसे हम ब्राह्मण कहते है।
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जो आनेवाले स्नेहीजनो मे आसक्त नहीं होता और जाने पर शोक नही करता । जो सदा आर्य वचनो मे रमण करता है। उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ।
५५७ जो सचित्त या अचित्त कोई भी पदार्थ थोडा या ज्यादा कितना ही क्यो न हो, स्वामी के दिये बिना चोरी से नहीं लेता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
जो देव, मनुष्य और तियंच सम्बन्धी मैथुनभाव का मन, वचन और काया से कभी सेवन नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ।
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जिस प्रकार जल मे उत्पन्न हुआ कमल जल से लिप्त नही होता, उसी प्रकार काम-भोग के वातावरण मे उत्पन्न हुआ जो मनुष्य उससे लिप्त नही होता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ।
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ब्रह्मचर्य के पालन से ब्राह्मण होता है।