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जीवन और कला ( भिक्षाचरी)
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सरस या नीरस - जैसा भी आहार समय पर उपलब्ध हो जाय, उसे 'मधु- घृत' की तरह प्रसन्न चित्त से खाए ।
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साधक
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मुनि स्वाद के लिए न खाए, वल्कि जीवन निर्वाह के लिए खाए ।
५२४
मुनि सयमभार के निर्वाह करने के लिए ही आहार ग्रहण करे ।
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सयमी मुनि पक्षी की भाँति कल की अपेक्षा न रखता हुआ पात्र लेकर भिक्षा के लिए परिभ्रमण करे ।