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इस सकलन के सपादक हैं- श्री गणेश मुनि जी शास्त्री । जैन साहित्य के क्षेत्र मे श्री गणेश मुनि जी एक जाने-माने विद्वान सत है । आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं, लेखक, कवि, गायक एव वक्ता - सभी विशेषताएँ आप मे विद्यमान है । आपकी कृतियो मे " आधुनिक विज्ञान और अहिंसा" " अहिमा की बोलती मीनारें" अहिंसा - प्रधान विचार साहित्य मे विशिष्ट स्थान रखती है । उनमे आपकी चिंतक व दार्शनिक प्रतिभा का सुन्दर रूप झलकता है 'इन्द्रभूति गौतम " मुनि श्री की एक शोधप्रधान सर्वथा मौलिक कृति है जिसमे अव तक के अछूते विषय को बडे ही सुन्दर सुरुचिपूर्ण एव तथ्यात्मक ढंग से गया है । विपय के प्रस्तुतीकरण की कला मुनिश्रीजी मे अपनी काव्य माहित्य मे 'वाणी वीणा' एव 'सुबह के नमूने हैं | अब तक विविध त्रिपयो पर आपने लिखी है जो साहित्यिक क्षेत्र मे आदर के साथ अपनाई गई हैं ।
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प्रस्तुत किया विशिष्ट है ।
भूले' काव्य शैली के सुन्दरतम लगभग २१ से अधिक पुस्तके
प्रस्तुत पुस्तक के सम्बन्ध मे अधिक कहने की अपेक्षा नही होगी, पाठक व दर्शक स्वय ही इसे देख कर मुक्त मन से प्रशंसा कर उठेगा, और गीता, रामायण एवं धम्मपद की भाँति इसे भी अपने नित्य पठनीय ग्रथो की पवित्र पक्ति मे रखकर कृतार्थता अनुभव करेगा ।
इस प्रकाशन को मुद्रण आदि की दृष्टि से सुन्दर व आकर्षक बनाने मे यशस्वी सपादक श्री श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' का हार्दिक सहयोग मिला है, जिस कारण पुस्तक का मुद्रण शुद्ध, सुन्दर व बाह्य रूप भावपूर्ण बना है । इस प्रकाशन मे अर्थ सहयोग देने वाले दानी-मानी उदार चेता महानुभावो का हम हार्दिक आभार मानते हैं । अमर जैन साहित्य संस्थान की ओर से प्रकाशित महत्वपूर्ण साहित्य की पक्ति मे यह ग्रथ अपना विशेष स्थान बनायेगा और पाठको के मन को रुचिकर लगेगा इसी आशा के साथ
मंत्री राजेन्द्रकुमार महेता