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श्रमण-धर्म
४७४ निर्गन्य मुनि पचाश्रव का निरोध करनेवाले, तीन गुप्तियो से गुप्त, छह प्रकार के जीवो की रक्षा करनेवाले, पाँच इन्द्रियो का निग्रह करनेवाले, स्वस्थ चित्तवाले और ऋजुदर्शी होते है ।
४७५ श्रमण भूख का दमन करनेवाला होता है, थोडा-आहार मिलने पर भी वह कभी क्रोध नही करता।
४७६ (श्रमण) जिस अनन्य-श्रद्धा से उत्तम-चारित्र धर्म स्वीकार किया हो, उसी श्रद्धा से उस का अनुपालन करे, तथा आचार्य द्वारा प्रदर्शित गुणो की आराधना मे सतत जागरूक रहे ।
४७७ यदि कोई वन्दन न करे, तो उस पर क्रुद्ध न होवे, और यदि कोई वन्दन करे तो गर्व न करे । इस प्रकार जो विवेक पुरस्सर सयम-धर्म की आराधना करता है, उस का साधुत्त्व निर्वाध-भाव से स्थिर रहता है।
४७८ इन्द्रियो का दमन करनेवाले मुनि को यदि कोई दुष्ट व्यक्ति पीटे तो वह-"आत्मा का नाश नही होता" ऐसा चिन्तन करे, किन्तु प्रतिशोध की भावना किंचित् भी मन मे न लाए ।
४७६ सयम मे अनुरक्त महपियो को चारित्र पर्याय-देवलोक जैसा सुखऐश्वर्य प्रदान करनेवाला होता है।
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जो साधक सयम मे अनुरक्त नहीं है, उन के लिए चारित्र पर्याय महानरक जैसा कष्टदायी बन जाता है।