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जीवन और कला ( श्रमण )
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सयमी मुनि लेप लगे उतना भी सग्रह न करे, वासी न रखे ।
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मुनि कर्म आने के सभी अप्रशस्त द्वारो को सब ओर से बन्द कर अनाश्रवी बन जाता है ।
४६७
सयमी साधक अध्यात्म तथा ध्यानयोग से आत्मा का दमन एव अनुशासन करनेवाला होता है ।
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भिक्षु सर्व जीवो के प्रति दयानुकम्पी रहे ।
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समभाव की साधना करने से श्रमण होता है ।
४७०
ज्ञान की आराधना - मनन करने से मुनि होता है ।
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जैसे मेरु पर्वत को तराजू से तोलना बहुत ही कठिन कार्य है, वैसे ही निश्चल और निर्भय-भाव से श्रमण-धर्म का पालन करना बहुत ही कठिन कार्य है ।
४७२
जो सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन से सम्पन्न हो, सयम और तप मे निरत हो, ऐसे गुणो से युक्त सयमी साधक को ही साधु कहना चाहिये ।
४७३
सयमी किसी भी प्राणी को पीडा न पहुंचावे । जो सयम के पालन मे किसी प्रकार का खेद नही करते हैं, वे पराक्रमी मुनि इन्द्रादि द्वारा प्रशसित होते हैं ।