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जीवन और कला (संयम )
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सयम से जीव आश्रव - पाप का निरोध करता है ।
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साधक सयम और तप से आत्मा को सतत् भावित करता हुआ विचरण करे |
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जो जीवो को नही जानता है वह अजीवो को भी नही जानता । जीव और अजीव दोनो को नही जाननेवाला सयम को कैसे जानेगा ?
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जो जीवो को भी जानता है और अजीवो को भी जानता है । वह जीव और अजीव दोनो को जाननेवाला सयम को भी भलीभांतिसम्यक् प्रकार से जान लेता है ।
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असयम से निवृत्ति और सयम मे प्रवृत्ति करनी चाहिए ।
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सब गृहस्थो की अपेक्षा साधुओ का सयम श्रेष्ठ होता है ।
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सयमी आत्मा, हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य सेवन, भोग- लिप्सा एव लोभ इन सब का सदा परित्याग करे |
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जो मनुष्य प्रतिमास दस-दस लाख गायो का दान देता है, उस की अपेक्षा कुछ नही देनेवाले सयमी का सयम श्रेष्ठ है ।