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विनय
३८३ जो शिष्य गुरु की आज्ञा और निर्देश का पालन करता है, उनके निकटसम्पर्क मे रहता है, तथा उन के इगित और आकार से मनोभाव को समझ कर कार्य करता है, वह विनीत कहलाता है।
३८४ आत्म-हितैषी साधक अपने आप को विनय धर्म मे स्थिर करे ।
३८५ जो मुनि अभिमान, क्रोध, माया, या प्रमादवश गुरु के निकट रहकर विनय नही सीखता, उन के प्रति विनय का व्यवहार नही करता उस का यह अविनयी भाव वास के फल की तरह स्वय के लिए विनाश का कारण बनता है।
सभव है कदाचित् अग्नि न जलावे, सम्भव है कुपित विपधर न डसे
और यह भी सम्भव है कि हलाहल विप भी मृत्यु का कारण न बने, किन्तु गुरु की अवहेलना करनेवाले साधक के लिए मोक्ष सम्भव नही है।
३८७ बडो के साथ सदा विनयपूर्ण व्यवहार करो ।
३८८
कोई महापुरुष सुन्दर-शिक्षा द्वारा किसी को विनय-मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे तब वह कुपित होता है । ऐसी स्थिति मे वह स्वय अपने द्वार पर आई हुई दिव्य लक्ष्मी को डण्डा-मार कर भगा देता है ।