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धर्म और दर्शन (मोक्ष) १०५
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जिसने सर्व-आश्रवो का निरोध कर दिया है, तथा सर्वकर्मों का क्षय कर दिया है, वह विपुलोत्तम शाश्वत मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । ३७५
गुरु और वृद्ध [ स्थविर मुनियो ] की सेवा करना, अज्ञानी - जनो का दूर से ही वर्जन करना, स्वाध्याय करना, एकान्तवास करना, सूत्र और अर्थ का चिन्तन करना, तथा धैर्य रखना, यह मोक्ष का मार्ग है ।
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जो साधक परीषहो पर विजय पाता है उस के लिए मोक्ष सुलभ है | ३७७
घृत से अभिसिञ्चित अग्नि जिस प्रकार पूर्ण प्रकाश को पाती है, उसी प्रकार सरल एवं शुद्ध साधक ही पूर्ण निर्वाण-मोक्ष को प्राप्त होता है । ३७८--३७६
जिस प्रकार कोई म्लेच्छ ( जगली) नगर की अनेक विध-विशेषताओ को देख लेने पर भी उपमा न मिलने से उस का वर्णन करने मे वह असमर्थ होता है । इसी प्रकार सिद्धात्माओ का सुख अनुपम होता है । उनकी तुलना नही हो सकती ।
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सर्वकार्य सिद्ध होने वे सिद्ध हैं, सर्वतत्व के पारगामी होने से बुद्ध हैं, ससार समुद्र को तैर चुके होने से पारगत है, तथा हमेशा सिद्ध रहेगे, इस से परपरागत है ।
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सिद्धात्मा समस्त दुखो को नष्ट किये होते हैं । जन्म, जरा और मृत्यु के बन्धन से मुक्त होते हैं । अन्याबाध सुख का अनुभव करते हैं और शाश्वत सिद्ध होते हैं ।
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ऐसा सुख न तो मनुष्य के होता है और न सभी देवताओ के, जैसा कि अव्यावाघ गुण को प्राप्त सिद्धात्माओ के होता है ।