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ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ही मोक्ष का मार्ग है, ऐसा सर्वदर्शी ज्ञानियों ने बतलाया है ।
मोक्ष
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श्रद्धा के विना ज्ञान नही होता, ज्ञान के बिना आचरण नही होता, आचरण के विना मोक्ष नही मिलता और मोक्ष पाये बिना निर्वाणपूर्ण शान्ति नही मिलती ।
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जैसे चन्द्रमा सभी नक्षत्रो मे प्रधान है उसी प्रकार मोक्ष भी सभी पुरुषार्थों में प्रधान है, अतएव मुनि सदा यतनावान् जितेन्द्रिय होकर मोक्ष की साधना करे ।
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जो ज्ञानी आत्मा इस लोक मे छोटे-बडे सभी प्राणियो को आत्मतुल्य देखते है, पद्रव्यात्मक इस महान् लोक का सूक्ष्मता से निरीक्षण करते हैं तथा अप्रमत्तभाव से सयम मे रत प्राप्ति के अधिकारी हैं ।
रहते हैं । वे ही मोक्ष
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आत्मा अपने स्वय के उपार्जित कर्मों से ही बधता है । कृतकर्मों को भोगे विना मुक्ति नही है ।
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ज्ञान और कर्म से ही मोक्ष प्राप्त होता है ।
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