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( ६ ) है, उनमे वह अमोघ शक्ति है, प्रभावशीलता है कि जो उनका श्रवण करे मनन-चिंतन करें उन पर विश्वासपूर्वक आचरण करे उसकी सुप्त चेतना प्रवुद्ध हो सकती है, उसके अन्तरग पटल पर छाये मोह-आवरण हट सकते हैं, और विवेक का दिव्य प्रकाश जगमगा सकता है। उनके उपदेश की वह पवित्र मदाकिनी जिधर से भी वह जाती है, उधर ही भव-भव का ताप-सताप विलय होकर शीतलता छा जाती है। मानव अपने देवत्व को प्राप्त कर सकता है महावीर के उपदेशो का अनुसरण कर। महावीर के उपदेश एक पारस है, जिनका स्पर्श पाकर मानव मन धर्म की मजुल स्वर्णाभा से युक्त हो सकता है।
भगवान महावीर को आज ढाई हजार वर्ष बीत चुके हैं, जिस युग मे, जिन परिस्थितियो मे उनका अवतरण हुआ था वे आज से बहुत भिन्न रही होगी, इसलिए सम्भव है उनके उपदेशो मे सामयिक समस्याओ का समाधान भी रहे पर उस ढाई हजार वर्ष पुरानो वाणी को हम पुरानी कहे तो उपयुक्त नही होगा। पुरानी होकर भी उसमे पुरानापन नहीं है, बासीपन नही है । यह अमर सत्य है कि महापुरुपो की वाणी मे जीवन का शास्वत स्वर गूंजता रहता है । देशकाल की परिधि से मुक्त, वह चिरतन सत्य की दिव्यता से युक्त होती है । तीर्थकर त्रिकाल-सत्य के द्रष्टा होते हैं अत उनका उपदेश कालातीत, शास्वत माधुर्य और चिरतन ताजगी-स्फूर्ति लिए होता है। उनके उपदेशो मे जो स्फूति, प्रेरणा और जीवन-स्पर्शिता ढाई हजार वर्ष पूर्व थी वह आज भी है । यह प्रत्यक्ष अनुभव का विषय है। नहि कस्तूरिकागंध. शपथेनानुभाव्यते-कस्तूरी की सुगन्ध बताने के लिए सौगन्ध खाने की क्या जरूरत ? भगवान महावीर के उपदेशो की उपयोगिता और महत्ता बताने के लिए शब्द विस्तार की क्या अपेक्षा है ? वे स्वय ही अपनी उपयोगिता के जीवत प्रमाण हैं । उनका एक वचन भी जीवन को उच्चता एव श्रेष्ठता के शिखर पर पहुंचा सकता है।
प्रस्तुत "भगवान महावीर के हजार उपदेश" मे प्रभु की वाणीरूप क्षीर समुद्र मे से एक हजार वचन उमियाँ सकलित की गई है। मेरा विचार तो था-पच्चीस वी निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष्य मे भगवान महावीर के पच्चीम