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धर्म और दर्शन ( तत्व-स्वरूप ) ६१
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जो जीव को भी जानता है, अजीव को भी जानता है । जीव- अजीव के स्वरूप को जाननेवाला साधक सयम के स्वरूप को भी जान सकता है ।
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[१] सामायिक, [२] छेदोपस्थापनीय, [३] परिहार विशुद्धि, [४] सूक्ष्मसपराय तथा [५] कषायरहित यथाख्यातचारित्र [ जो छद्मस्थ या जिन को प्राप्त होता है ] ये सर्व कर्मों की राशि को रिक्त-क्षय करनेवाले चारित्र के पाँच भेद है ।
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जो दुखोत्पत्ति के कारण को नही समझता । वह उस के निरोध का कारण कैसे जान सकेगा ।