________________
ज्ञान, दर्शन, चारित्र और सुगति को प्राप्त होते है ।
धर्म और दर्शन ( तत्व-स्वरूप )
८७
३१४
तप इस मार्ग को ग्रहण करनेवाले जीव
३१५
पाँच समिति और तीन गुप्ति-ये आठ प्रवचन माताएँ कहलाती है ।
३१६
ईर्या समिति, भाषा समिति, एपणा समिति, आदान-निक्षेपण समिति और उच्चार-समिति-ये पाँच समितियाँ है । तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, और कायगुप्तिये तीन गुप्तियाँ है । इस प्रकार दोनो मिल कर अष्ट प्रवचन-माताएँ हैं ।
३१७
ये पाँच समितियाँ चारित्र की दया आदि प्रवृत्तियो मे काम आती है और तीन गुप्तियाँ सव प्रकार अशुभ- विपयो से निवृत्त होने में सहायक बनती हैं ।
३१८
जो पण्डितमुनि उक्त अष्ट-प्रवचन माताओ का सम्यक् प्रकार से पालन करता है । वह इस विराट ससार से सदा के लिए शीघ्र ही मुक्त हो जाता है।
३१६
अस्तित्त्व, अस्तित्त्व में परिणत होता है और नास्तित्त्व - नास्तित्त्व मे परिणत होता है । अर्थात् सत्-सत् के रूप मे रहता है और असत् असत् के रूप मे ।
३२०
आत्मा अपने द्वारा किये हुए कर्मों की उदीरणा स्वय करता है । अपने द्वारा ही स्वय उनकी गर्हा आलोचना करता है । तथा अपने द्वारा ही कर्मों का सवर आश्रव का निरोध करता है ।