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तत्व-स्वरूप
३०७
केवलदर्शी जिनेन्द्रो ने इस लोक को, धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव- इस प्रकार से पड़द्रव्य रूप प्रतिपादन किया है ।
३०८
धर्मद्रव्य गति लक्षण वाला है, जब कि अधर्म द्रव्य स्थिति लक्षण वाला है, और आकाश द्रव्य अवकाश लक्षणवाला है । यह सर्व द्रव्यों के रहने का भाजन है ।
३०६
वर्तना काल का लक्षण है, उपयोग जीव का लक्षण है, वह ज्ञान, दर्शन सुख और दुख से जाना जाता है ।
३१०
ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग ये सब जीव के लक्षण हैं ।
३११
शव्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श पुद्गल के लक्षण है ।
ये
३१२
जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप, आश्रव, सवर, निर्जरा और मोक्ष - ये नो तथ्य-तत्त्व हैं |
३१३
जीवादिक तथ्य पदार्थों के अस्तित्त्व के विषय मे जो अन्त करण से श्रद्धा करता है उसे सम्यक्त्व होता है, उस अन्त करण की श्रद्धा को ही सम्यक्त्व कहा है ।
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