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और म० बुद्ध ]
[२६७ (श्रावस्ती) के एक कुलपुत्र (Councillon's) के वंशमे जन्मा था। जब वह युवा था तब ही उसने एक जैनमुनिके निकट दीक्षा ग्रहण करली थी। किन्तु अन्तमें वह किसी कारणसे बौद्ध होगया बतलाया गया है। इसके विषयमें अधिक कुछ न कहकर यह बतलाना ही पर्याप्त है कि जैनसाहित्यमें ऐसा कथानक हमारे देखनेमे नही आया है ।
इसके अतिरिक्त 'गंगातीरिय' भिक्षुके सम्बन्धमे कहा गया है कि उसने गृहत्याग कर एक वर्षतक मौनव्रत धारण किया था। यह हमको मालूम है कि म० बुद्धने मौनव्रत पालनेके लिए मनाई की थी इसलिए सभव है कि यह साधु जैनमुनि हों। गंगा किनारे रहनेके कारण यह 'गंगातीरिय' कहलाते थे।
उपरान्त इसमें एक कथानक 'अंगुलिमाल' शीर्षकका है ।' यद्यपि इसका संबंध जैन संप्रदायसे कुछ भी नहीं बताया गया है; परन्तु इसके विवरणक्रमसे यही प्रतीत होता है कि यह कथा भी जैनसाहित्यसे अपनाली गई है, जैसा कि हम ऋषिदासीकी कथाके सम्बन्धमे देख चुके है। यह कथा इसप्रकार बतलाई गई है कि 'अंगुलिमाल-कौशलके राजाके पुरोहित ब्राह्मण भग्गवका पुत्र था । पुरोहितने उसके जन्म लक्षणोसे-जान लिया था कि वह पक्का चोर होगा। यह समाचार उन्होंने रानासे भी कहे; जिससे उनके मनको भी पीड़ा सहन करनी पड़ी थी। उसके द्वारा राजाको पीडा सहन करनी पडी, इसलिये उसकी ख्याति 'हिसक' रूपमें होगई । वह बलवान भी विशेष था। सात हाथियोंका बल उसे प्राप्त था। उचित वय प्राप्त करनेपर उसे तक्षशिलामें विद्याध्ययन करनेके लिये १. पूर्व पृष्ठ ११२. २. Psalms of the Brethren. P. 318,