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________________ - २४६] [ भगवान महावारमारकर, पकाकर खानेको भले ही दे, पर जो उसे खाता है वह पापी है।" बुद्धने उत्तरमें कहा कि "शठ दानके लिए भले ही पत्नी व पुत्रका वध करे, पर साधु उस मांसके खानेसे पापलिप्त नहीं होता (जातक भा०२ पृष्ठ १८२) यहांपर जैन और बौद्ध अहिंसाके प्रभेदको प्रकट करनेमें किस नीचतासे काम लिया है, यह स्पष्ट है । इससे यह भी स्पष्ट है कि बुद्ध मांस खाते थे और उसके खानेमे पाप नहीं समझते थे ! जब कि भगवान महावीर जानबूझकर मारना और मांस भक्षण करना पापका कारण बतलाते थे। यही बात तेलोवाद जातक' से भी प्रमाणित है। वहां कहा गया है कि बौद्ध भिक्षु सांथागारमें इकट्ठे हुए कह रहे थे कि 'नातपुत्त मुंह चढ़ाये यह कहते जारहे हैं कि बुद्ध जानबूझकर खास उनके लिए पकाये गए मांसका भक्षण कर रहे हैं।' यह सुनकर बुद्धबोले कि 'भिक्षुओ, यह बात पहली दफेहीकी नहीं है बल्कि नातपुत्त इससे पहले भी कई दफे खास मेरे लिए पके हुए मांसको मेरे भक्षण करनेपर आक्षेप कर चुके हैं । (जातक-कावेल भाग २४० १८२) इसपर डॉ. विमलचरण लॉ० कहते हैं कि 'इस वर्णनसे स्पष्ट है कि म. बुद्धने भरसक प्रयत्न भ० महावीरको नीचा दिखानेके लिए किये थे।' (सम क्षत्रिय छैन्स ऑफ एन्शियेन्ट इंडिया पृ० १२५) किन्तु दुर्भाग्यसे वह इसमें सफल नहीं हुए यह प्रत्यक्ष प्रगट है।। ___अन्यत्र बौद्धग्रन्थोंके आधारसे भगवान महावीरको कर्मसिद्धांतका प्रतिपादक बताया गया है और कहा गया है कि कर्मोको नाश करनेके लिए मोक्षमार्गपर पहुंचने तक बीचके पथमें पुत्र और. पौत्रादिका जन्म इन जीवोंके होजाता है। फिर वह मोक्षमार्गको
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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