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________________ १०४ ] [ भगवान महावीर जावे और उनकी ५० वर्षकी उमरसे ७० वर्षतक कोई पूर्ण घटनाक्रम न मिले तो कोई आश्चर्य नहीं है । यही समय भगवान महावीरके धर्मप्रचारका था । इसलिये म० बुद्ध के जीवन के उक्त अतरालकालकी घटनाओके भभावका कारण भगवान महावीरका सर्वज्ञावस्थामें प्रचार करना ही प्रतिभाषित होता है । इस अवस्थामें हमको डॉ० हार्नलेसाहबकी उक्त गणना इस तरह भी प्रमाणित मिलती है और यह प्राय ठीक ही है कि भगवान महावीरके निर्वाणोपरान्त म० वुद्ध अधिक से अधिक पाच वर्ष और जिये थे । किन्तु उक्त प्रकार म० बुद्धकी जीवनघटनाओंके अभावका कारण निर्दिष्ट करते हुये बौद्ध शास्त्रकार के इस वथनका भी समाधान करलेना आवश्यक है कि म० बुद्धके दिव्य धर्मोपदेशके समक्ष निगन्य नातपुत ( महावीर ) का प्रभाव क्षीण होगया, जो पहिले विशेष प्रभावको लिये हुये था' । बौद्ध शास्त्रकार के इस कथन समान ही जैनाचार्यने भी यही बात भगवान महावीरके विषय नही है कि उनके धर्मोपदेशके उदय होते ही एकान्तमत अंधका रमें विलीन होगये । इस दशानें यह दोनों कथन एक दूमरेके १ फॉम्बल्स जातक भाग ३ पृ० १२८ और हिस्टोरी नाम पु० ०८. जयति कलावपि गुणानुशासनविभव । २ " तब जिनशासनवि दोषकशासनविभवः स्तुवेति चैनं प्रभाकुशासन विभवः ॥ १३७ ॥ अनवद्य वास्तव दृष्टेष्टाविरोधत स्वावा. इट न पाहादोस द्विवयविरोधान्नीश्वराऽस्य द्वाः ॥ १३८ ॥ त्वमसि सुगसुग्महितो अधिकत्वाशयप्रणामामहितः । टोकपपरम हितोऽनावरण ज्योतिकञ्चर द्वामहितः ॥ १३९ ॥ बृहद् स्वयंभूस्तोत्र ।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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