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महावीर जी का धर्म संघ स्थापित हुआ, तब वे उनके भक्त हो गये थे। । जैन धर्म भक्त होने के कारण वे धर्मात्मा और दयावान वीर नर थे । वे पाप कर्मों से दूर रहते थे और पाप से भयभीत थे । यद्यपि वे हिंसाजन्य दुष्कर्म नहीं करते थे - मांस मदिरा के त्यागी थे और किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं देते थे. परन्तु अपने राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिये हर समय तैयार रहते थे । ज्ञातु चत्रिय वज्जिय गणराज्य में सम्मिलित थे । जब मगध सम्राट् ने उनकी स्वाधीनता अपहरण करनी चाही तो वे अन्य क्षत्रियों के साथ कंधा भिड़ा कर बहादुरी से लड़े थे ।
खूब
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उनके धर्मपरायण जीवन ने उनकी ऐहिक दशा भी समृद्धिशाली बना दी थी । वे सुखी थे और भरे पूरे थे । उनका देश आनन्द भोग में निमग्न था। आस पास के प्रतिष्टित राजकुलों से उनका सम्बन्ध था । निस्सन्देह ज्ञातु - चत्रिय आदर्श श्रावक थे । उनके ही समुन्नत क्षत्रिय कुल मे भे० महावीर का कल्याणकारी जन्म हुआ था ।
१. हमारा 'सं० जैन इतिहास, ना० २ प ६ पृ० ८५ २. हमारा "स० जैन इतिहाम” भा० २ खंड १ पृ० १६-१८