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(५) सुख, (६) दुख, (७) और आत्मा । इन सातों के सम्मेलन और विछोह से जीवन व्यवहार है । सम्मिलन सुख से और विछोह दुख से होता है। इस लिए किसी व्यक्ति को किसी अन्य से कोई हानि नहीं पहुँच सकती ! वह शीत जल में जीव
मानता था ।
इस प्रकार यह श्रमण लोग भ० पार्श्वनाथ के मतानुकूल चली आई हुई प्राचीन जैन श्रमण परम्परा से प्रभावित हुए अपने मनोनुकूल सिद्धान्तों का प्रचार कर रहे थे । भगवान् पार्श्वनाथ के उपदेश से एक क्रान्ति उपस्थित हुई थी, जिसके प्रभाव से यह मतप्रवर्तक अपने को अछूता नहीं रख सके थे । एक ही मत में हिंसक और अहिंसक अनुयायी मिलते थे । आजीविकों में ऐसे दो पक्ष मौजूद थे १ । पूर्ण कश्यप जीव हिंसा में पुण्य-पाप नहीं मानता था । पकुड़ का भी यही हाल था । अजित यद्यपि यज्ञ- याज्ञ वैदिक क्रियाओं का विरोधी था, परन्तु हिंसा को उचित मानता था । इन लोगों का नैतिक बल इतना शक्तिशाली नहीं था कि जनता को मांस-मदिरा की लिप्सा से बचा लेता । म० गौतम बुद्ध भी सर्वथा मांस भोजन का निषेध नहीं कर सके थे ! ऐसे तापस भी मौजूद थे; जो वर्ष भर के लिये एक हाथी को मार कर रख लेते थे२ | जैनधर्म
१ 'बोम इस जातक' में भाजीविकों का भोजन मछली-गोमयादि लिखा है ( मद्दा विकट भोजतो अहोसि मच्छुगोमयादीनि परिभूमि ) परन्तु 'महासीद्दनाद सुत' में उनको वनस्पति भोजी लिखा हैं । २-सूत्र कृताङ्ग २२२१५२ ( SBE ) ना० पृ०४१८ |