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सके। वह पुराने दिगम्बर मुनि थे। जैनियों के पुरातन ग्यारह अङ्ग और कुछ पूर्वगत शास्त्रो को जानते थे फिर भी उन्हें गणधर का पद नहीं मिला | वह रुष्ट हुए श्रावस्ती आये और अपने को तीर्थर वतला कर लोगों को उपदेश देने लगे कि "ज्ञान से मोक्ष नहीं होता। ज्ञानी और अज्ञानी ससार मे नियत काल तक परिभ्रमण करते हुए समान रीति से दुख का अन्त करते है। देव या ईश्वर कोई है ही नहीं। इसलिये स्वेच्छा पूर्वक शून्य का ध्यान करना चाहिए।" १ लोगों ने गोशाल की यह नई बात ध्यान से सुनी और उसके अनुयायी भी हो गये, किन्तु तीर्थकर महावीर रूपी ज्ञान सूर्योदय होते ही, वह हतप्रभ हो गया। गोशाल को अपनी करनी पर पश्चाताप हुआ और वह बुद्धि भृष्ट होकर मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसके आजीवक मत की गणना अज्ञानमत मे की गई है।२
संजय वैरस्थिपुत्र प्रसिद्ध बौद्ध गुरु मोग्गलान (मौद्गलायन) और सारिपुत्त का गुरू था।३ मोग्गलान और सारिपुत्त उपरान्त बौद्धधर्म मे दीक्षित हुये थे। मोद्गलन अथवा
मौद्गलायन के विषय मे श्री अमितगति आचार्य ने लिखा है कि __ "श्री पार्श्वनाथ की शिष्य परम्परा में मौडिलायन नामका तपस्वी
था। उसने वीरनाथ से रुष्ट होकर बुद्ध दर्शन को प्रगति दी और शुद्धोदन के पुत्र बुद्ध को परमात्मा कहा ।" अत मौद्गलायन १. 'दर्शनसार'-गोम्मटसार जीवकार'-व हिग्जी० पृ० ३६ देखो २. संजेई०, भा० २ खड । पृ०७२ ३. महावग्ग ११२३ २४ ४. धर्म परीक्षा श्लो० ६/७